ना बेचा कर।
प्यार मांगते हे तुझसे,
भटकते हुए मुसाफिर की तरह,
हमको खुद से यूं दूर ना किया कर,
दिल से बांधी उम्मीदों को तू
सरेआम यूं बेवफाई के बाजार में ना बेचा कर।
हाल तो क्या कहे खुद का तुझसे,
तू जानता ही नहीं मुझे अपनों की तरह,
तुझसे ना हो सके प्यार ऐसे वादे ना किया कर,
शीशे से इस नाजुक दिल को तू,
सरेआम यूं बेवफाई के बाजार में ना बेचा कर।
झुक जाएंगे पाने को तूझसे,
पर तू मेरा बनकर तो आ मेरी तरह,
खुद की जान भी गवा देंगे तेरे लिए पर,
मेरी जान की कीमत तू,
सरेआम यूं बेवफाई के बाजार में ना बेचा कर।
– दर्शिता।
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